आधी उड़ान छोड़ के जो लौट आये थे


आधी उड़ान छोड़ के जो लौट आये थे।
जन्नत के ख़्वाब हम को उन्हीं ने दिखाये थे॥

अम्नोसुक़ून शह्र की तक़दीर में कहाँ।
इस ही जगह परिन्द कभी छटपटाये थे॥

कुछ देर ही निगाह मिलाते हैं लोग-बाग।
दो चार बार हमने भी आँसू बहाये थे॥

नफ़रत बढ़ा रहे हैं मुसलसल रिवाज़-ओ-रस्म।
बेकार हमने रेत में दरिया बहाये थे॥

किरदार भी बनाती है ज़िल्लत कभी-कभी।
तुलसी व कालिदास इसी ने बनाये थे॥

हीरे-जवाहरात की महफ़िल का हो गुमान।
चुन-चुन के लफ़्ज़ उन1 ने यों मिसरे सजाये थे॥

[समस्त पुराने उस्ताज़ शायर-शायराओं ने]

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