सच कहने से फ़र्ज़ अदा हो जाता है।
लेकिन
सब का दिल खट्टा हो जाता है॥
हरे
नहीं करने हैं फिर से दिल के ज़ख़्म।
हस्ती 1 का उनवान 2 ख़ला 3 हो जाता है॥
स्टेज
ने मेरा नाम भी छीन लिया मुझसे।
क्या
कीजे! किरदार बड़ा हो जाता है॥
इसी
जगह इन्सान बनाता है तक़दीर।
इसी
जगह इन्सान हवा हो जाता है॥
जिसकी
नस्लें उसके साथ नहीं रहतीं।
ऐसा
देश अपाहिज सा हो जाता है॥
ज्ञान
अकड़ कर आता है भक्तों के पास।
बच्चों
से मिल कर बच्चा हो जाता है॥ 4
यार
‘नवीन’ अब इतना भी सच मत बोलो।
सारा
कुनबा संज़ीदा हो जाता है॥
1 जीवन 2 शीर्षक 3 रिक्तस्थान
4 सन्दर्भ - उद्धव-गोपी सम्वाद
4 सन्दर्भ - उद्धव-गोपी सम्वाद
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