बोल-बचनों को सदाचार समझ लेते हैं।
लोग टीलों को भी कुहसार समझ
लेते हैं॥
दूर अम्बर में कोई चश्म लहू
रोती है।
हम यहाँ उस को चमत्कार समझ लेते हैं॥
कोई उस पार से आता है
तसव्वुर ले कर।
हम यहाँ ख़ुद को कलाकार समझ
लेते हैं॥
भूल कर भी कभी पैजनियाँ को
पाज़ेब न बोल।
किस की झनकार है फ़नकार समझ
लेते हैं॥
पहले हर बात पे हम लोग उलझ
पड़ते थे।
अब तो बस रार का इसरार समझ
लेते हैं॥
एक दूजे को बहुत घाव दिये
हैं हमने।
आओ अब साथ में उपचार समझ
लेते हैं॥
अपनी बातों का बतंगड़ न
बानाएँ साहब।
सार एक पल में समझदार समझ
लेते हैं॥
टीला – मिट्टी या रेट की
बड़ी छोटी सी पहाड़ी, कुहसार – पहाड़ [बहुवचन], चश्म – आँख, तसव्वुर – कल्पना, रार – लड़ाई, इसरार – जिद / हठ [लड़ाई की
वज़्ह]
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