रहे जो आईनों से दूर तो क़दम बहक गये


रहे जो आईनों से दूर तो क़दम बहक गये।
और आईना उठाया तो, कई भरम बहक गये।।

जहानेहुस्न का बड़ा अजीब सा है मस’अला।
ज़रा कहीं हवा चली कि पेचो-ख़म बहक गये।।

हमारी ओर देख कर यूँ मुस्कुराया मत करो।
तुम्हें तो लुत्फ़ आ गया हमारे ग़म बहक गये।।

उदास रात में जो दावा कर रहे थे होश का।
सहर हुई तो होश खोये और सनम बहक गये।।

अब आप ही बताइये कि उनका क्या क़सूर है। 
चमक-दमक ने गुल खिलाये, मुहतरम बहक गये।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें