जिसकी जुल्फ़ों से बहा है दरिया।
उस कि इज्ज़त में जड़ा है दरिया॥
गर भगीरथ कि नज़र से देखें।
हर समुन्दर से बड़ा है दरिया॥
आब को अक़्ल भी होती है जनाब।
कृष्ण के पाँव पड़ा है दरिया॥
ख़ुद-ब-ख़ुद अपनी हिफ़ाज़त करना।
राम को लील चुका है दरिया॥
ख़ुद में रखता है अनासिर सारे।
एक अजूबा सा ख़ला है दरिया॥
बेकली से ही उपजता है सुकून।
जी! सराबों का सिला है दरिया॥
बाक़ी दुनिया की तो कह सकता नहीं।
मेरी धरती पे ख़ुदा है दरिया॥
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