ज़ुल्मत की रह में हर इक तारा बिछा पड़ा है।
और चाँद बदलियों के पीछे पड़ा हुआ है॥
फिर से नई सहर की कुहरे ने माँग भर दी।
और सूर्य अपने रथ पर ख़्वाबों को बुन रहा है॥
नींदें उड़ाईं जिसने, उस
को ज़मीं पे लाओ।
तारों से बात कर के किस का भला हुआ है॥
मिटती नहीं है साहब खूँ से लिखी इबारत।
जो कुछ किया है तुमने कागज़ पे आ चुका है॥
जोशोख़रोश,जज़्बा; ख़्वाबोख़याल, कोशिश।
हालात का ये अजगर क्या-क्या निगल चुका है॥
जब जामवंत गरजा हनुमत में जोश जागा।
हमको जगाने वाला लोरी सुना रहा है॥
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