जहाँ रहो हो वहाँ रौशनी लुटाओ तो।
चिराग़ बन के किसी तौर जगमगाओ तो।।
जो क़र्ज़ सर पै उठाए भटक रहे हो तुम।
भले ही किस्त में लेकिन उसे चुकाओ
तो।।
जो ये जहान तुम्हारे लिये मुफ़ीद नहीं।
सुकूँ कहाँ है ज़रा हमको भी बताओ तो।।
चलो क़बूल किया सिर्फ़ तुम ही हो सच्चे।
मगर ख़ुदा की डगर पै क़दम बढाओ तो।।
सुधार अब तो फ़क़त बेटियों के बस में
है।
भरोसा करके कभी इनको आजमाओ तो।।
मज़ा न आवै तो बेशक उतार लेना फिर।
पर एक बार तुम अपनी पतंग उड़ाओ तो।।
हुनर-नवाज़ नहीं छूते पोरुओं से थन।
सहर भी होगी मगर रात को बिताओ तो।।
तुम्हें पसंद नहीं थे जो दूसरों के
रंग।
उन्हीं में डूबे पड़े हो स्वयं,
बताओ तो।।
मुकुट, मुँड़ासे, विजयमाल सब तुम्हारे हैं।
हुज़ूरे-आला मगर अपना सर झुकाओ तो।।
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