अजनबी हरगिज़ न थे हम शहर में



अजनबी हरगिज़ न थे हम शहर में।
वक़्त ने कुछ देर से जाना हमें।।

उलझनों से वासता तक था नहीं।
क्या मज़े थे माँ तुम्हारी गोद में।।

चाशनी है उस की बातों में हुज़ूर।
वो बना लेगा जगह बाज़ार में।।

अब हिफ़ाज़त का हुनर सिखलाएँगी।
मछलियाँ जो फँस न पायीं जाल में।।

मैं ने ही धक्का दिया होगा मुझे।
तीसरा था ही न कोई रेस  में।।

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