जब
सूरज दद्दू, नदियाँ
पी जाते हैं।
तटबन्धों
के मिलने के दिन आते हैं॥
रातें
ही राहों को सियाह नहीं करतीं।
दिन
भी कैसे-कैसे दिन दिखलाते हैं॥
बची-खुची
ख़ुशबू ही चमन को मिलती है।
कली
चटखते ही भँवरे आ जाते हैं॥
नाज़ुक
दिल वाले अक्सर होते हैं शार्प।
आहट
मिलते ही पञ्छी उड़ जाते हैं॥
दिल
जिद पर आमादा हो तो बह्स न कर।
बच्चों
को बच्चों की तरह समझाते हैं॥
हम
तो गहरी नींद में होते हैं अक्सर।
पापा
हौले-हौले सर सहलाते हैं॥
और
किसी दुनिया के वशिन्दे हैं हम।
याँ
तो सैर-सपाटा करने आते हैं॥
दम-घोंटू
माहौल में ही जीता है सच।
सब
को सब थोड़े ही झुठला पाते हैं॥
दिन
में ख़्वाब सजाना बन्द करो साहब।
आँखों
के नीचे धब्बे पड़ जाते हैं॥
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