नज़र जो चाहती थी वह दिखा
क्या।
निगाहों का सफ़र पूरा हुआ
क्या॥
हमारे दरमियाँ जो मर'हले थे।।
कमी कुछ भी नहीं है
ज़िन्दगी में।
मगर जो चाहते थे वो मिला
क्या॥
वफ़ा हर बार दे देती है
धोका।
किसी के काम आया तजरबा
क्या॥
अगर गूँगी नहीं हैं उस की
यादें।
तो मेरा ज़हन बहरा हो गया
क्या॥
मुहब्बत में फ़ना होना
लिखा है।
पुरानी रस्म को मैं तोड़ता
क्या॥
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