तुमने गर नाचीज़ को महफ़िल लिखा था।
हमने भी तुमको महे-कामिल लिखा था।।
अब भले नाक़ाबिले-बरदाश्त लिख दें ।
अब तलक तो प्यार के क़ाबिल लिखा था ।।
तुमको छूकर थम गया था यह समुन्दर ।
बस इसी ख़ातिर तुम्हें साहिल लिखा था ।।
हर शिकायत इस तरफ़ ही आ रही है।
क्या इसी ख़ातिर हमें मंज़िल लिखा था।।
तुमने जिस काग़ज़ के टुकड़े कर दिये हैं।
उस पै दीवाने का मुस्तक़बिल लिखा था।।
माहे-कामिल - पूर्णमासी का चाँद, मुस्तक़्बिल - भविष्य
माहे-कामिल - पूर्णमासी का चाँद, मुस्तक़्बिल - भविष्य
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