हम ने दर्दों को कलेज़े से लगाया ही नहीं


हम ने दर्दों को कलेज़े से लगाया ही नहीं 

ग़म की अगवानी में कालीन बिछाया ही नहीं

 

प्यार से जो भी मिला हम को रतन जैसा लगा

हम ने फेंके हुए सिक्कों को उठाया ही नहीं

 

ये ही कोशिश रही लमहों को युगों तक ले जाएँ

रेत पर हमने लक़ीरों को बनाया ही नहीं

 

जब ज़ुरूरत पड़ी बस ख़ुद को बनाया बेहतर

आईना हमने ज़माने को दिखाया ही नहीं

 

या मुहब्बत के सबब या कभी रहमत के सबब  

एक दुश्मन भी कभी सामने आया ही नहीं

 

रूह ने ज़िस्म की आँखों से तलाशा जो कुछ

सिर्फ़ आँखों में रहा दिल में समाया ही नहीं

 

एक बरसात में ढह जाने थे बालू के पहाड़

बादलो तुम ने मगर ज़ोर लगाया ही नहीं

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