बात पूरी हो न पानी थी, लिहाज़ा टाल दी

बात पूरी हो न पानी थी, लिहाज़ा टाल दी।
ज़िन्दगी फ़िलहाल मौक़े के मुताबिक़ ढाल दी॥

गर मिला मौक़ा तो हम फिर से करेंगे बातचीत।
ये न समझें बात हर दम के लिये ही टाल दी॥

ग़म तो हमको भी है तुमको जिच्च करने का मगर
तुमने भी तो पैदलों को ऊँट वाली चाल १ दी॥

हम तुम्हें लुक़मान २ समझे और तुम निकले रक़ीब ३।
जो बढाये रोग - वह बूटी- दवा में डाल दी॥

मेहनती लोगों से मेहनत ही कराते हैं सभी।
रब ने भी तो चींटियों को रेंगने की चाल दी॥ ४

ज़िल्द ही से है क़िताबों की हिफ़ाज़त और निखार।
रब ने भी कुछ सोच कर ही हड्डियों को खाल दी॥

विश्व को रफ़्तार का तुहफ़ा दिया तकनीक ने।
एक धीमे ज़ह्र की चुटकी कुएँ में डाल दी॥

आप मानें या न मानें, लोग तो बतलायेंगे।
हर तरक्क़ी ने हमें बस सूरतेबदहाल दी॥

गिरता ही जाता है रुपया विश्व के बाज़ार में।
क्या इसी ख़ातिर तुम्हारे हाथ में टकसाल दी॥


१ पैदल की चाल सीधी होती है। मगर जब यह तिरछा चलता है तो प्रतिस्पर्धी के मुहरे को मार गिराता है फिर वह कितना भी बड़ा क्यों न हो। पैदल की तिरछी चाल बादशाह को प्याद भी देती है। शतरंज के जानकार इस बारे में और भी बहुत कुछ जानते हैं।
२ एक ऐसा हक़ीम जिस के पास हर रोग का उपचार था
३ प्रतिस्पर्धी, दुश्मन

४ ख़ून पीने वाले मच्छरों को उड़ने वाला और दिन भर परिश्रम करने वाली चींटियों को रेंगने वाला बनाया

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