अब जैसे
भी हुई हो भलाई हुई तो है।
नाकामियों
ने राह दिखाई हुई तो है॥
इस बार
बात बनने के इमकान हैं बहुत।
देखें
घड़ी लगन की निकलती है किस घड़ी।
परमातमा
के संग सगाई हुई तो है॥
आख़िर
दरस दिखाने में इतना गुरेज़ क्यों।
धूनी
हम आइनों ने रमाई हुई तो है॥
उन की
ग़रज़ नहीं तो हमारी ग़रज़ सही।
उन के
हुज़ूर अपनी रसाई हुई तो है॥
वादाख़िलाफ़
कैसे हुए हम बताइये।
अश्कों
ने पाई-पाई चुकाई हुई तो है॥
दाबे
नहीं दबे है दरप इस मकान का।
होने
को कुल बदन की तराई हुई तो है॥
आख़िर दरस दिखाने में इतना गुरेज़ क्यों।
जवाब देंहटाएंधूनी हम आइनों ने रमाई हुई तो है॥,,,, बहुत सुंदर ग़ज़ल,