अगर ये हो कि हरिक दिल में प्यार भर जाये।
तो क़ायनात घड़ी भर में ही सँवर जाये॥
किसी की याद मुझे भी उदास कर जाये।
कोई तो हो जो मेरे ज़िक्र से सिहर जाये॥
जो उस को रोज़ ही आना है मेरे ख़्वाबों में।
तो मेरी पलकों पे उलफ़त के नक्श धर जाये॥
किसी भी तरह वो इज़हार तो करे एक बार।
नज़र से कह के ज़ुबाँ से भले मुकर जाये॥
तपिश के दौर ने ‘शबनम की उम्र’ कम कर दी।
घटा घिरे तो गुलिस्ताँ निखर-निखर जाये॥
बहुत ज़ियादा नहीं दूर अब वो सुब्ह ‘नवीन’।
फ़क़त ये रात किसी तरह से गुजर जाये॥
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