रौशनी में हर हुनर दिखता है और बेहतर हमें।
साया दिखलाती है मिट्टी आईना बन कर हमें॥
चाक पर चढ़ जाता है अक्सर कोई दिल का गुबार।
बैठे-बैठे यक-ब-यक आ जाते हैं चक्कर हमें॥
घुप अँधेरों में घुमाया दहशतों के आस-पास।
और फिर हैवानियत ने दे दिया खंजर हमें॥
उन के जैसा बनने को हमने हवेली बेच दी।
देख लो सैलानियों ने कर दिया बेघर हमें॥
ज़ह्र पीना कब किसी का शौक़ होता है ‘नवीन’।
बस किसी के वासते बनना पड़ा शंकर हमें॥
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