अफ़साने सच्चे हो गए


अफ़साने सच्चे हो गए।
तो क्या हम झूठे हो गए॥

हम भी तो इनसाँ ही हैं।
हम भी दीवाने हो गए॥

तकते-तकते उस की राह।
आँखों में जाले हो गए॥

इतने जाले पड़ गए हैं।
दीदों 1 के टुकड़े हो गए॥

ऐसी अटकी हैं साँसें।
आहों के सपने हो गए॥

उफ़्फ़! क’नखियों का जादू।
ज़ख़्मों के जलसे हो गए॥

किसे रुला कर आए हो।
किस के दिन पूरे हो गए॥

भाव तुम्हारे गिर गए या।
हम सचमुच महँगे हो गए॥

कहाँ रहे तुम इतने साल।
आईने शीशे हो गए॥



1 दीद – देखना, दर्शन 

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