जब कि थे बीसियों ज़ाविये रंग में


जब कि थे बीसियों ज़ाविये रंग में।
हम ने ढूँढे फ़क़त मसअले रंग में॥

दीन लफ़्फ़ाज़ियों की बलि चढ गया।
आ गया नुक़्स अच्छे-भले रंग में॥

हर तरफ़ यों तो ख़ुश-रंग भी थे मगर।
हम ने गोते लगाये बुझे-रंग में॥

इक मुसव्विर की कूची के सदक़े हुज़ूर।
धारी-धारी धड़े बन गये रंग में॥

एक मुद्दत हुई अब तो कह दो 'नवीन'
"आओ रँग दें तुम्हें प्रीत के रंग में"॥

ज़ाविया -दृष्टिकोणपहलू 
मसअले - मस्याएँझगड़े-झण्झट 
दीन - धर्म (मानवतावादी धर्म) सही अर्थों में परोपकार 
मुसव्विर - चित्रकार

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