दयार हर घड़ी सुनसान भी नहीं रहता।
और अब हमेशा तेरा ध्यान भी
नहीं रहता॥
चलो ये माना मुहब्बत फ़ुज़ूल
है लेकिन।
किसी का होने में नुक़सान भी नहीं रहता॥
तुम्हीं ने रोग दिया तुम ही
ने दवाएँ दीं।
मरज़ न होता तो अहसान भी
नहीं रहता॥
किसी के दिल में ज़माने क़याम
करते हैं।
किसी के दिल में तो मेहमान
भी नहीं रहता॥
जिन्हों के दिल में जगह धूप
को नहीं मिलती।
उन्हों के दिल में गुलिस्तान
भी नहीं रहता॥
जो हम न रहते कमानों की
बदगुमानी में।
तो इस जहान में इमकान भी
नहीं रहता॥
अब उस दयार में किसका भला
करेंगे हम।
अब उस दयार में शैतान भी
नहीं रहता॥
'नवीन' तुझको ख़ुदा कह दिया तो है लेकिन।
कभी-कभी तो तू इनसान भी नहीं
रहता॥
क़याम - ठहरना, कमान - नियन्त्रण, बदगुमानी
- किसी के बारे में ग़लत तरीक़े से सोचना (कमानों की बदगुमानी यानि नियन्त्रण करने
वालों की बुरी सोच वाला सिस्टम), इमकान - संभावनाएँ, अवसर
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