जो दुनिया
का ढब है ख़ुद भी वैसा कर के।
कहाँ जाएँ
अपने जैसों को तनहा कर के॥
मुरलीवाले
बैर हमारा मुरली से था।
तू क्यों
छोड़ गया है ब्रज को सूना कर के॥
रोज़ सुबह
तेरी तसवीर सजाते हैं हम।
खिल जाता
है दिल दिलबर की पूजा कर के॥
बुनते-बुनते
प्रीत-चदरिया बुन पाई है।
गँवा न
देना इसको रेज़ा-रेज़ा कर के॥
तू ही बतला
दे तुझ तक कैसे पहुँचें हम।
तूने अपना
मोल रखा है ऊँचा कर के॥

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