न जाने कैसी सियाही से लिखते थे कातिब

न जाने कैसी सियाही से लिखते थे कातिब ।
ग़ज़ल के पन्ने अभी तक दमकते हैं साहिब ।।

हवस की आग ने पानी से जगमगा दी ज़मीन ।
ग़लत नहीं है ज़रा भी ये तर्क है वाजिब ।।

मैं बे-गुनाह ज़मानत नहीं जुटा पाया ।
गुनाहगार नहीं हूँ, शरीफ़ हूँ साहिब ।।

मैं अपनी चाह की जानिब कभी न चल पाया ।
रवाँ है मौत की जानिब हयात का तालिब ।।

"कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है" ।
कि शेर कह के ‘तख़ल्लुस’ में टाँक दूँ ‘ग़ालिब’ ।।

- कातिब - लिखिया, पुराने समय में पैसा ले कर चिट्ठी, अर्ज़ी आदि लिखने वाले लोग
- वाजिब - उचित
- रवाँ है - जा रहा है, गतिमान है
- जानिब - तरफ़, ओर, दिशा (में)
- हयात का तालिब - जीवन को खोजने वाला

- दूसरे शेर में पानी से बिजली बनाने का सन्दर्भ है

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