बात जब दिल बदन से करता है

 

बात जब दिल बदन से करता है।

तब कहीं आदमी सँवरता है॥

 

आब जब आग से गुजरता है।

इक नई शय का नक़्श उभरता है॥

 

बात सुनता नहीं हवाओं की।

आब धरती पे ही उतरता है॥

 

आदमी भूलता नहीं कुछ भी।

बा-ज़रूरत फ़क़त मुकरता है॥

 

अपने कल की ही फ़िक्र है सब को।

कौन दुनिया में रब से डरता है॥

 

आब - पानी

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