अज़्म ले कर जब सफ़ीने छूटते हैं


अज़्म ले कर जब सफ़ीने छूटते हैं।
जलजलों के भी पसीने छूटते हैं॥

छुट नहीं पायेंगे यादों से मरासिम।
औरतों से कब नगीने छूटते हैं॥

झूठ-मक्कारी-दग़ा-रिश्वत-ख़ुशामद।
कितने लोगों से ये ज़ीने छूटते हैं॥

टूट ही जाती है बेऔलाद औरत।
ज्यों ही बछड़े दूध पीने छूटते हैं॥

चाँद जब खिड़की से बाहर झाँकता है।
बेढ़बों से भी क़रीने छूटते हैं॥


अज़्म - संकल्प,  सफ़ीना - नाव,  जलजला - विकट तूफान, मरासिम – सम्बंध, ज़ीना - ऊपर जाने की सीढ़ियाँ, क़रीना - यहाँ स्टाइल मारने के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है


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