सनसनीखेज़ हुआ चाहती है

सनसनीखेज़ हुआ चाहती है।
तिश्नगी तेज़ हुआ चाहती है॥

हैरत-अंगेज़ हुआ चाहती है।
आह - ज़रखेज़ हुआ चाहती है॥

अपनी थोड़ी सी धनक दे भी दे।
रात रँगरेज़ हुआ चाहती है॥

आबजू देख तेरे होते हुये।
आग - आमेज़ हुआ चाहती है॥

बस पियाला ही तलबगार नहीं।
मय भी लबरेज़ हुआ चाहती है॥

रौशनी तुझ से भला क्या परहेज़।
तू ही परहेज़ हुआ चाहती है॥

हम फ़क़ीरी के 'इशक' में पागल।
जीस्त - पर्वेज़ हुआ चाहती है॥

तिश्नगी – प्यास, ज़रखेज़ - उपजाऊ [ज़मीन], आबजू - झरना-नदी-नहर आदि, आमेज़ - मिलाने वाला, लबरेज़ - लबालब भरा हुआ, लबालब भरना, जीस्त - ज़िन्दगी, परवेज़ - प्रतिष्ठित, विजेता के सन्दर्भ में

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