उठा के हाथ में खंजर मेरी तलाश न कर



उठा के हाथ में खंजर मेरी तलाश न कर ।
अगर है तू भी सितमगर मेरी तलाश न कर ॥

किसी के दिल को दुखाना मुझे दुखाना है ।
किसी के दिल को दुखा कर मेरी तलाश न कर ॥

अगर सुगन्ध की मानिन्द उड़ नहीं सकता ।
तो घर में बैठ बिरादर मेरी तलाश न कर ॥

अभी अँधेरों के दर तक किरन नहीं पहुँची।
हसीन रात के लश्कर मेरी तलाश न कर॥

दरस-परस के सिवा कौन किसको समझा है ।
मुझी से आँख चुरा कर मेरी तलाश न कर ॥

मैं वो हूँ जिस को अनासिर सलाम करते हैं।
ख़ला के खोल के अन्दर मेरी तलाश न कर॥

मैं ख़ुद ख़ुदा हूँ कहीं भी रहूँ मेरी मरज़ी।
तू सिर्फ़ अपनी डगर पर मेरी तलाश न कर॥

अनासिर – पंचतत्व; ख़ला – निर्जन, संसार;


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