मैं तुझ को बहलाऊँ, तू मुझ को बहला


मैं तुझ को बहलाऊँ, तू मुझ को बहला।
अगर समझता है अपना तो हक़ जतला॥

भटक रहा है तू, तो मैं भी तनहा हूँ।
बोल कहाँ मिलना है चल तू ही बतला॥

डाँट-डपट कुछ भी कर, लेकिन मेरे भाई।
अपने बीच में दुनियादारी को मत ला॥

दावा है तुझ को भी तर कर देंगे अश्क़।
एक बार तो ख़ुद से मेरा ज़िक्र चला॥

आज कई दिन बाद मिले हैं फिर से हम।
भाई प्लीज़ ज़रा मेरे सर को सहला॥

पछतावे के अश्क़ बहा कर आँखों से।
मैं तुझ को नहलाऊँ तू मुझ को नहला॥

जी करता है फिर से खेलें खेल 'नवीन'
आँख-मिचौनी वाला वो पहला-पहला॥

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