सभी गुनाह कर के भी वो बेगुनाह बन गयी


सभी गुनाह कर के भी वो बेगुनाह बन गयी।
अदालत उस के हक़ में ख़ुद-ब-ख़ुद गवाह बन गयी॥

क़दम-क़दम पे मुश्किलें खड़ी हैं सीना तान कर।
ये ज़िन्दगी तो आँसुओं की सैरगाह बन गयी॥

हमारे हक़ में उस ने तो चमन उतारे थे मगर।
हमारी भूख ही हमारी क़ब्रगाह बन गयी॥

क़लम की रोशनाई जिस पे रोशनी को नाज़ था।
न जाने क्यूँ अँधेरों की पनाहगाह बन गयी॥

अदब की अज़मतों की इक मिसाल देखिये हुजूर।
अदीब जिस पे चल पड़े वो शाहराह बन गयी॥

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