कोई तो जा के समझाये हमारे कर्णधारों को


कोई तो जा के समझाये हमारे कर्णधारों को।
चलो मिल कर भटकने से बचाएँ होनहारों को॥

भले अफ़सर नहीं बनते, भले हाकिम नहीं बनते।
चलो हम मान लेते हैं कि सब आलिम नहीं बनते।
मगर इतने ज़ियादा नौजवाँ मुजरिम नहीं बनते।
सही रुजगार मिल जाते अगर बेरोज़गारों को॥

निरक्षरता निरंकुशता के धब्बे कैसे छूटेंगे।
कुशलता-दक्षता वाले ख़ज़ाने कैसे लूटेंगे।
अगर बादल नहीं छाये तो झरने कैसे फूटेंगे।
हमारी देहरी तक कौन लायेगा बहारों को॥

अगर सच में सुमन-सौरभ लुटाने की तमन्ना है।
अगर सच में धरा पर स्वर्ग लाने की तमन्ना है।
अगर सच में ग़रीबी को मिटाने की तमन्ना है।
तो फिर कर्ज़ों की दलदल से निकालें कर्ज़दारों को॥

चलन के सूर्य को संक्रान्ति हम जैसों से मिलती है।
हरिक संक्रान्ति को विश्रान्ति हम जैसों से मिलती है।
वो तो लोगों को मन की शान्ति हम जैसों से मिलती है।
वगरना पूछता ही कौन है साहित्यकारों को॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें