उस की उन मदभरी आँखों में
हया भरते हुये।
बोलना भूल गये लोग सदा भरते
हुये॥
उस बलानोश की आँखों
का यही है फ़रमान।
उस फ़लक-बाज़ से मिलने
की तमन्ना है बहुत।
आरज़ूओं के गुबारों में
हवा भरते हुये॥
आप रूदाद समझिये
कि इन्हें ख़ुश-बतियाँ।
उस की आदत है गिला करना गला
भरते हुये॥
ख़ामुशी अपने तरीक़े से
दिखाती है दरस।
संग-मरमर की शिलाओं में
सदा भरते हुये॥
उन से कह दो कि हमें रोक
नहीं सकते वह।
कौन उजालों को भला रोक
सका, भरते हुये॥
रीत जाना है किसी रोज़ सभी
ने ही 'नवीन'।
जिस्म के अदने से कासे में वफ़ा
भरते हुये॥
हया - लज्जा, शर्मो-हया; सदा - आवाज़; बलानोश - घोर
शराबी; फ़लकबाज़ -आसमान में
रहने वाली परी; रूदाद - कथा, कहानी, विलाप; गिला - शिकायत; कासा - छोटा सा कटोरा, भिक्षा-पात्र
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