हवा के ज़ोर पे ज़ोर अपना आज़मा कर देख


हवा के ज़ोर पै ज़ोर अपना आज़मा कर देख । 
न उड़ सके तो कम-अज़-कम पतंग उड़ा कर देख ॥ 

फिर इस जहान की मिट्टी पलीद कर देना । 
पर उस से पहले नई बस्तियाँ बसा कर देख ॥

वो कोई चाँद नहीं है जो सब को दिख जाए । 
वो एक फ़िक्र है, उस को अमल में ला कर देख ॥ 

ये आदमी है, समाजों में घुल के रहता है । 
यक़ीं न हो तो समन्दर से बूँद उठा कर देख ॥

तनाव सर पे चढ़ा हो तो बचपने में उतर । 
ख़ुद अपने हाथों से पानी को छपछपा कर देख ॥ 

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