ख़ुश्क सहराओं की तक़दीर बदल आते हैं।
आप भी चलिये ज़रा दूर टहल आते हैं॥
आप के जाते ही ग़म आ के पसर जाता है।
सारा दिन सुस्त पड़ी रहती है ग़म की हिरनी।
शाम ढलते ही मगर पंख निकल आते हैं।।
सुनते हैं आप के सीने से लगे रहते हैं ग़म।
हम भी जाते हैं किसी सोज़ में ढल आते हैं॥
सहरा - रेगिस्तान
सहरा - रेगिस्तान
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